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होली पर बरेली में होती है एक अनोखी रामलीला

उत्तर प्रदेश के बरेली महानगर के बीचोबीच मोहल्ला बमनपुरी की पुरपेंच गलियों में होली के इस मौसम में डेढ सौ से ज्यादा सालों से एक अनोखी रामलीला का मंचन किया जाता है। मुस्लिम संतों के सक्रिय सहयोग और...

होली पर बरेली में होती है एक अनोखी रामलीला
एजेंसीFri, 06 Mar 2015 08:29 AM
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उत्तर प्रदेश के बरेली महानगर के बीचोबीच मोहल्ला बमनपुरी की पुरपेंच गलियों में होली के इस मौसम में डेढ सौ से ज्यादा सालों से एक अनोखी रामलीला का मंचन किया जाता है। मुस्लिम संतों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से 1861 में स्थानीय नागरिकों ने होली के बढते हुडदंग को रोकने और उसे एक धार्मिक माहौल देने के लिए यह रामलीला शुरु की थी। यह रामलीला हर साल फाल्गुन शुक्ल नवमी को प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्ण द्वादशी तक आयोजित की जाती है। इस रामलीला के दौरान खास फाल्गुनी पूर्णिमा के दिन शहर से मुख्य बाजारों से होकर भगवान श्रीराम की बारात निकाली जाती है। इस श्रीराम बारात के साथ ठेलों पर रंग भरे ड्रम लेकर चल रहे लोग एक दूसरे को सरोबार करते हैं।

संत तुलसीदास कृत रामचरित मानस को आधार बनाकर शुरु की गयी 18 दिन तक चलने वाली इस रामलीला के दौरान खरदूषण, मेघनाद और कुंभकर्ण के वध और पुतलादहन के बाद चैत्र कृष्ण दशमी को रावण वध के साथ दशहरा आयोजित किया जाता है। बाद में श्रीराम की शोभायात्रा भरत मिलाप और श्रीराम राजतिलक के बाद लीला सम्पन्न होती है।

बमनपुरी की रामलीला इस साल 27 फरवरी को गणेश पूजन से प्रारम्भ हुई। इसमें रावण वध 14 मार्च को होगा और 16 मार्च को राम राज्याभिषेक के साथ रामलीला का समापन होगा। चैत्र मास में रावण वध के सम्बन्ध में स्कंद पुराण के धर्मारण्य महात्म्य में दी गयी कथा के अनुसार राम-रावण युद्ध माघ शुक्ल द्वितीय से लेकर चैत्र कृष्ण् चतुर्दशी तक 87 दिन तक चला। लक्ष्मण मूर्छा के कारण बीच में केवल 15 दिन संग्राम बंद रहा और शेष 72 दिन तक दोनों पक्षों में युद्ध हुआ था।

इस पौराणिक कथा के अनुसार माघ शुक्ल प्रतिपदा को अंगदजी दूत बनकर रावण के दरबार में गए और द्वितीय को सीताजी को माया से उनके पति के कटे हुए मस्तक का दर्शन कराया गया और उस दिन से अष्टमी तक राक्षसों और वानरों के बीच घमासान युद्ध हुआ। स्कंद पुराण के अनुसार माघ कृष्ण नवमी से चार दिन तक कुंभकर्ण ने घोर युद्ध किया और बहुत से वानरों को मार डाला। अंत में श्रीरामजी के हाथों मारा गया। बाद में फाल्गुन शुक्ल द्वादशी से चैत्र चतुदर्शी तक 18 दिनों तक युद्ध करके श्रीराम ने रावण को मार डाला और अमावस्या के दिन रावण आदि राक्षसों के दाह संस्कार किए गये।

बमनपुरी मोहल्ले में रहने वाले बुजुर्गों के अनुसार शुरु में इलाके के अनेक प्रभावशाली लोगों ने अंग्रेजों के जमाने के जमाने में जब रामलीला का मंचन रोकने की कोशिश की, तब मुस्लिम संत आला हजरत इमाम अहमद खां की गवाही के बाद ही रामलीला को सरकारी मान्यता मिली थी। 1888-89 में इसका स्वरुप बढ गया और रामलीला का बडे स्तर पर मंचन होने लगा। रात में मशालें जलाकर रोशनी की जाती थी और तब रामलीला होती थी। तबसे यह रामलीला हर साल बगैर किसी रोकटोक के चल रही है।

यूं इस रामलीला से जुडे सांप्रदायिक सछ्वाव के कई और प्रसंग हैं। इसके आयोजन में हमेशा से मुस्लिमों का सहयोग और भागीदारी रही है। मोहल्ला ख्वाजा कुतुब स्थित खानकाह ए नियाजिया के सूफ संतों ने भी समय-समय पर वस्त्र और धन देकर इस रामलीला के आयोजन को बढावा दिया। काफी साल पहले तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष शाकिर दाद खां और रहीम दाद खां इस रामलीला के आयोजन में पूरी शिद्दत से जुटते थे।

इस साल 155 साल पुरानी हो चुकी इस रामलीला की खास बात यह है कि इसके आयोजन के लिए कहीं कोई मंच नहीं होता है। बहुत सालों तक इस रामलील का मंचन किसी मंच पर नहीं बल्कि बमनपुरी की गलियों एवं आसपास के इलाकों में होता था। अब इस रामलीला का मुख्य क्षेत्र बमनपुरी का नृसिंह मंदिर है। इस रामलीला में पहले बमनपुरी के लोग ही विभिन्न पात्रों के रुप में मंच पर होते थे मगर अब इसके लिए बाहर से मंडली भी मंगाई जाने लगी है।

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